भोजन कब क्यों और कैसे करें ?

सेहत के लिए कैसा हो आहार ?

हम चाहे कितना भी विकास कर लिए हो, किंतु विश्व की सबसे पुरानी चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद के अनुसार सेहत के लिए जो स्टूल घोषित की गई है उसी स्टूल के बिना हमारे अच्छी सेहत की कल्पना नहीं की जा सकती है ।
जिस प्रकार एक स्टूल को स्थिर रखने के लिए कम से कम तीन पैर जरूरी होते हैं उसी प्रकार से शरीर को स्वस्थ और सेहतमंद रखने के लिए आहार, नींद, और ब्रह्मचर्य इन तीन उपायों का पालन करना अनिवार्य होता है ।
कई दशकों से हम शारीरिक स्वास्थ्य के प्रति लापरवाह होते गए हैं । मनमाने सिद्धांत और साधन, सुविधाओं का उपयोग करके हम शरीर को रोगी बनाते जा रहे हैं । सेहतमंद शरीर का पहला पैर आहार है ।
एक अच्छी आहार से शरीर को पोषण, बल, स्वास्थ्य, आयु, उत्साह,दिमागी शक्ति, और ताकत की प्राप्ति होती है। लेकिन कुपोषण से बहुत भोजन करने से हमारे शरीर में शक्ति हीनता, शक्ति में कमी, कांति हीनता, आलस्य, याद ना रहना, दुर्बलता, भोजन का ना पचना, आदि । बीमारियां हो जाती हैं ।
आजकल के भोजन में चटपटे मसाले, चीनी, मैदा, अनाज की मात्रा अधिक होती है और फल सब्जियों की मात्रा बहुत ही कम होती है । भोजन में इस प्रकार की लापरवाही की वजह से हमारा पाचन बिगड़ा हुआ होता है हमें भोजन नहीं पचता और हमें कब्ज रहती है । हमारे ऑतो में मल जम जाता है गैस पैदा होने लगती हैं। हमारे खून में क्षार तत्व की कमी होती है। टॉक्सिन पैदा होने लगते हैं । इम्यूनिटी कमजोर होने लगती है । इस प्रकार से गलत भोजन की वजह से हमारा स्वास्थ्य गड़बड़ रहने लगता है ।
सेहत के लिए जरूरी है कि आहार उत्तम हो और इसलिए हम आज अच्छी सेहत के लिए हमारा आहार कैसा हो इस बारे में चर्चा करेंगे ।100%

हमारा आहार या भोजन कैसा हो :-

रोग का उत्पन्न होना और रोग से मुक्त होना दोनों के बीच में आहार का गहरा संबंध है इस संबंध में एक आयुर्वेद में धनवंतरी महाराज की एक कथानक प्रसिद्ध है
एक बार धनवंतरी महाराज अपने शिष्यों की परीक्षा लेने के लिए सुंदर पक्षी बन गए और उन्होंने घर-घर जाकर के तीन प्रश्न करने लगे । कोई बताएं कौन रोगमुक्त है । वह कौन सा व्यक्ति है जो रोग रहित है ।
 या कैसे रोगों से बचा जा सकता है ।
इस प्रकार के प्रश्न सुनकर के अलग अलग ही चिकित्सक अलग-अलग उपाय बताने लगे कोई कहता है चवनप्राश खिलाए, कोई कहता मकरध्वज वटी खिलाए, कोई कहता मोती भस्म खिलाए कोई कहे काढा पिलाएं । उस समय के तात्कालिक विद्वान आयुर्वेद चिकित्सक बागभट अनुमान कर लिया और उन्होंने कहा की वही रोगी नहीं है जो कि हित भूख मितभूक और रितु भूख है अर्थात

  •  जो शरीर के लिए हितकारी भोजन करता हो । 
  • जो सीमित मात्रा में और उपयुक्त भोजन करता हो । 
  •  जो ऋतु के अनुसार और ईमानदारी की कमाई से कमाया हुआ भोजन करता हो वही रोगमुक्तरह सकता है ।

कितना सटीक उत्तर है बाल भट्ट ने रोग से मुक्ति के लिए आहार को आधार माना है उन्होंने कहा है कि भोजन वही हितकारी है जो अपने उद्देश्यों की पूर्ति करें। सिर्फ स्वाद के लिए खाया हुआ भोजन भोजन नहीं है । भोजन ऐसा होना चाहिए जो की पुष्टि देने वाला बल दायक शरीर को उत्साह देने वाला या संतुलित हो । असंतुलित भोजन नुकसान करता है और यह सिद्धांत आज के डाइटिशियन भी निर्विवाद रूप से मानते हैं कि ज्यादा चटपटे तला भोजन शरीर के स्वास्थ्य को कमजोर करता है क्योंकि तले हुए भोजन में एंटीऑक्डेंट की कमी हो जाती है और यह भोजन हमारे ब्लड में एसिडिटी पैदा करता है जिससे हम रोगी होते हैं ।
इसी प्रकार से आवश्यकता से ज्यादा मात्रा में भोजन करने से भी हमारे शरीर में अपच कब्ज गैस मोटापा आदि रोग पैदा हो जाते हैं। हमें उतना ही भोजन करना चाहिए जितना कि हमारे शरीर के लिए अनुकूलित हो। हमारी फिजियोलॉजिकल एक्शन को डिस्टर्ब ना करें। और ठीक समय में पच जाए यही मात्रा ही हमारे लिए उचित भोजन होगा ।
रितु भूख अर्थात ईमानदारी की कमाई से कमाया हुआ भोजन मन को पवित्र रखता है मन को पवित्र रखने से हमें मानसिक रोगों से रक्षा होती है। बेईमानी की कमाई करने वाला स्वत: ही मनोरोगी हो जाता है फिर वह चाहे कैसा भी भोजन करे वह निरोग नहीं रह पाता है इस संबंध में श्रवण कुमार की कहानी प्रचलित है ।
श्रवण कुमार माता पिता के भक्त थे । वह कावर मे लेकर करके तीर्थ यात्रा करा रहे थे, एक बार रात्रि के समय विश्राम करने के लिए उन्हें राजा का भोजन प्राप्त करना पड़ा सुबह जगने पर श्रवण कुमार के विचार बदले हुए थे उन्होंने अपने माता-पिता को आगे के तीर्थ यात्रा कराने से इंकार कर दिया । इससे अंधे माता पिता बहुत परेशान हो गए वे सोचने लगे कितना आज्ञाकारी पुत्र में एक ऐसा बदलाव आ गया । उन्होंने समझ लिया उन्होंने कहा बेटा मुझे आज तुम इस राज्य की सीमा से बाहर पहुंचा दो  उसके बाद तुम मत ले जाना, श्रवण कुमार फिर से तैयार हो गए और कंधे में माता-पिता को लेकर चले गए दूसरी रात्रि उन्होंने दूसरे राज्य में बिताया, वहां खाए हुए पहले राज्य के खाए हुए अन्य का आहार का प्रभाव खत्म होते हैं उनकी बुद्धि शुद्ध हो गई और विवेक जाग गया उन्होंने माता-पिता से क्षमा मांगी और तब माता-पिता ने कहा कि बेटा इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं है । दोस तो आहार का था ।
इसी प्रकार महाभारत में भी जब भीष्म पितामह बाणों की शैया पर पड़े हुए थे तब द्रौपदी ने पूछ ही लिया कि पितामह आप इतने ज्ञानी, बाल ब्रह्मचारी होते हुए भी आप की उपस्थिति में मेरी साड़ी खींची जा रही थी आप चुपचाप देख रहे थे । तभी तो उन्होंने कहा हां पुत्री उस समय मेरे शरीर में अन्यायपूर्ण दुर्योधन के भोजन से पोषित रक्त बह रहा था इसलिए मेरा विवेक नष्ट हो गया था आज मेरा वह दूषित रक्त अर्जुन के बाणों से निकल गया है इसलिए मुझ में भी विवेक जग गया है। इस प्रकार से भोजन किस प्रकार का और कहां का किया गया है उसका हमारे मानसिक स्थिति पर बहुत ही प्रभाव पड़ता है। इसलिए हमें भोजन ईमानदारी की करनी चाहिए।

Prevention is better than cure :-

शरीर के सेहत और स्वास्थ्य के लिए भोजन की आवश्यकता है । भोजन शरीर को स्वस्थ और स्थिर रखने के लिए जरूरी है ।जो भोजन शरीर को स्वस्थ और संतुलित रखता है शरीर की विषमता को दूर करता है और स्वस्थ कर देता है वही भोजन उत्तम भोजन है । यदि हमारा भोजन स्वस्थ कर हो तू दवाइयों  लेने की आवश्यकता कम ही पड़ती है । सुनियोजित आहार जल और वायु के प्रयोग और व्यायाम से हम स्वस्थ रह सकते हैं ।
महात्मा गांधी कहते थे कि पंच तत्वों के साथ मित्रता रखने वाला शायद ही बीमार होता हो इसलिए हमारे भोजन में पंच तत्व का स्थान होना चाहिए ।
हमारा भोजन सामग्री सात्विक भी होना चाहिए क्योंकि सात्विक भोजन आरोग्य देने वाला, बल कारक और पुष्टि देने वाला होता है। मिर्च मसालेदार, चटपटे, कड़वे, खट्टा, मीठा नमकीन भोजन के फायदे और नुकसान दोनों ही है ।
 आजकल जंक फूड यानी चिकनाई मिर्च मसाला युक्त तला भुना रेडीमेड खाने का प्रचलन बढ़ता जा रही है । यह प्रचलन ब्रेन डैमेज का भी कारण बन जाता है। ऐसा भोजन करने से नेचुरल ब्रेन केमिकल्स की मात्रा घटने लगती है और यह जंक फूड हमारे मस्तिष्क के लिए नुकसानदायक होते हैं । यह जंक फूड हमारे ब्रेन को एग्रेसिव बनाते हैं जिसकी वजह से आजकल लोगों में सहनशीलता की कमी देखी जा रही है ।
आजकल के बहुत सारे रोग फास्ट फूड की देन है फास्ट फूड को भोजन बनाने वालों को पित्ताशय की पथरी से दो चार होना पड़ता है। रहन-सहन और खान-पान में आया हुआ यह  बदलाव हमारे जीवन को नरक बना रहा है ।
आज इलाज कराने की अपेक्षा रोग से बचाव करना ज्यादा ही बेहतर है। इसलिए हमें अपने आहार पर ध्यान देना चाहिए । हमाराआहार हितकर होना चाहिए जो हितकर आहार और अहितकर आहार के बीच की दूरी को अच्छी तरह से समझ सकता है वह आचार विचार का पालन अच्छे ढंग से करता है ।और इस प्रकार से उचित रूप से आहार लेने से और सही बिहार करने से, उचित आहार-विहार करने से रोगों से बचा जा सकता है । इसीलिए कहा गया है कि प्रिवेंशन इज बेटर देन क्योंर ।
आजकल कुछ लोग अंडा, मांसाहार के बड़े पैरोकार हैं । उनका कहना है कि मांस, मछली बहुत ही बलवर्धक होता है किंतु यदि मांसाहार में इतना ही बल होता तो कुत्ते और बिल्ली सबसे ज्यादा बलवान होते मछली में उपस्थित मैथिल मरकरी स्नायु तंत्र को प्रभावित करता है । मांसाहार में मौजूद कोलेस्ट्रॉल हृदय रोग और नपुंसकता का कारण बनता है ।
श्रीमद्भगवद्गीता में तले भुने मिर्च मसालेदार चटपटी आहार को राजस आहार कहा गया है । जिससे दुःख, रोग पैदा होते हैं । बासी आहार तामसी आहार होता जिससे बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है ।
एक रिपोर्ट के अनुसार चटपटे मसालेदार भोजन के सेवन से ऑक्सिडाइज कोलेस्ट्रॉल की मात्रा शरीर में बहुत बढ़ जाती है ।इसलिए इससे रक्त वाहिनीओं में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ जाती है और यह रक्त वाहिनीया बंद हो करके हार्ड अटैक का कारण बन जाती हैं। डिब्बाबंद भोजन में ऑक्सीडाइज कोलेस्ट्रॉल होता है जो रक्त के बहाव को रोकता है जिसके कारण हार्ट अटैक की संभावना बढ़ जाती है बड़ी मात्रा में वसा युक्त भोजन कैंसर और हार्ट अटैक के रोगों का कारण है ।
एक ह्रदय रोग विशेषज्ञ के अनुसार स्नेक्स मिठाइयों में वसा कार्बोहाइड्रेट और रिफाइंड शुगर होता है जिससे अपच, डायबिटीज, ब्लड प्रेशर की बीमारियां होती हैं रक्तचाप जैसी बीमारियां होती हैं । दुनिया में हुए आज तक के पूरे शोध और रिपोर्ट यह पूरी तरह से सिफारिश करती हैं कि भोजन का उद्देश्य स्वाद नहीं स्वास्थ्य होना चाहिए ।
हृदय के रोग, कैंसर जैसी जटिल बीमारियों में कमी लाने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को नित रोज शारीरिक तौर पर सक्रिय रहते हुए ज्यादा से ज्यादा सब्जियों फल अंकुरित अन्न का सेवन करना चाहिए ।
आज की भोग वादी सभ्यता में यदि लोग भारतीय जीवनशैली को गहराई से समझ ले और उसके तथ्यों को समझ कर अपने जीवन में अनुकरण करने लगे तो हम जोर देते हुए  कह सकते हैं कि रोग, शोक, चिंता, मानसिक दुर्बलता आदि बहुत से रोगों से मुक्ति और बचाव संभव है ।
अरे स्वस्थ रहने की कला तो पशु-पक्षी भी जानते हैं जब तक उन्हें भूख नहीं लगती वह खाते नहीं, पेट में कोई गड़बड़ी हो तो खाना छोड़ देते हैं। घोड़ा कभी मांस नहीं खाता, बकरी आंक धतूरे तो खा लेती हैं लेकिन तंबाकू नहीं खाती । जिस प्रकार से अपने भोजन और रहन-सहन में हम परिवर्तन ला कर के बहुत से रोगों से बच सकते हैं ।

शाकाहार उत्तम आहार है:-

इतिहास गवाह है कि हमारे आहार का मुख्य भाग कंद मूल फल था। जब से मनुष्य मांसाहार को छोड़कर शाकाहार हुआ तब से उसके दांतो की भी बनावट मांसाहारी जीवो जैसी नहीं रह गई, इसलिए मनुष्य का उत्तम आहार शाकाहार है ।
फलों का महत्व जीवन में बहुत ही ज्यादा है हिंदू धर्म में भी फलदान का बड़ा महत्व है हमारी परंपराएं दर्शाती है कि फल एक उत्तम आहार है।
एम्स बंगलुरु के एक रिसर्च के अनुसार दिन में तीन बार सब्जियों फलों का सेवन करने वाले लोग एक बार सब्जी खाने वालों की तुलना में दिल की बीमारी से 75 परसेंट तक बचे रहते हैं। सप्ताह में 3 दिन खाने में सब्जी खाने वाले लोग सप्ताह में 1 दिन सब्जी खाने वालों की तुलना में हार्ट अटैक से 3 गुना बचे रहते हैं । इसलिए शाकाहार ही उत्तम भोजन है ।

आदमी अपनी कब्र अपनी जीभ से खोदता है:-

हम भोजन को स्वादिष्ट बनाने के लिए नमक मिर्च मसाले इत्यादि का अत्यधिक प्रयोग करते हैं। भोजन में स्वाद देने के लिए नमक का बहुत ही बड़ा स्थान है।भोजन मे नमक नहीं तो कोई स्वाद ही नहीं होता है। नमक का अंधाधुंध प्रयोग करने पर लंदन में हुए एक शोध के अनुसार यदि हम प्रतिदिन 6 ग्राम से अधिक नमक खाते हैं तो इसका सेहत पर बहुत ही विपरीत असर पड़ता है। ज्यादा नमक का सेवन करने से आमाशय का कैंसर, हाई बीपी, चर्म रोग, दिल की बीमारी और स्ट्रोक आदि रोग से ग्रसित हो जाते हैं । और हमारी आदत फास्ट फूड, जंक फूड खाने की हुई तो हमारे शरीर में नमक की अतिरिक्त मात्रा पहुंचती है जो हमारे लिए कब्र खोदने के समान ही होता है । इसीलिए कहा गया है कि आदमी अपनी कब्र अपनी जीभ से ही खोदता है ।
इसलिए हमारा भोजन ऐसा होना चाहिए जो हमें पोषण दे ,उत्साह दे, तेज दे, प्रतिभा दे, और हमें जीवन प्रदान करें। इसका पालन हम बड़े आराम से कर सकते हैं। हमें अपनी रसोई को थोड़ा सा नियंत्रण में लेने की जरूरत है। हमारी रसोई में अजवाइन, हींग, कलौंजी, करायल, मिर्च, धनिया, हल्दी, दालचीनी, तेज पत्ते, आदि गर्म मसाले आदि होते हैं जो कि हमारे भोजन के अंग है । लेकिन इनका उचित मात्रा में उपयोग करने के लिए ही शास्त्र में वर्णन है क्योंकि यह मसाले के साथ-साथ औषध भी हैं जब इनका व्यक्ति ज्यादा और रोज-रोज करने लगता है तो यह मसाले कहलाते हैं लेकिन थोड़ी सी मात्रा में इसका नियंत्रण रूप से उपयोग करने पर यही मसाले हमारे औषधि बन जाते हैं इसलिए हमें शाकाहार अपनाना चाहिए ।

आहार-विहार ही रोग का कारण और इलाज है:-

हमारी शारीरिक क्रियाशीलता का आधार हमारा आहार है शरीर का निर्माण ही आहार है प्राणियों में जो जीवन है वह आहार की वजह से चलता रहता है। आहार प्राणियों को बल, आरोग्य, वृद्धि प्रदान करता हैऔर इसीलिए हमारे शास्त्र स्वस्थ रहने के लिए केवल हितकर आहार का उपयोग करने की ही बात कहते हैं ।
हमारे जीवन शैली की गलतियों से ही हम रोग ग्रस्त होते हैं जिसमें आहार और बिहार का प्रमुख स्थान होता है ।
आयुर्वेद के कथन अनुसार हम जो भी आहार करते हैं उसके उत्तम परिणाम से रस की उत्पत्ति होती है रस से रक्त, रक्त से मांस, मांस से फैट, अस्थि, मज्जा, बोन मैरो, शुक्र सीमन य स्पर्म और ओज की उत्पत्ति होती है । इसलिए यह भोजन शरीर के लिए आधार स्तंभ है।
शरीर में रस रक्त आदि का निर्माण नेचुरल रूप से रेगुलर होता रहता है इसके लिए मेटाबोलिज़्म काम करती है मेटाबोलिज्म में दो क्रियाएं सम्मिलित है ।
भोजन करने से शरीर के अंदर भोजन पचता है और उससे विभिन्न प्रकार की आवश्यक एवं शरीर के निर्माण के लिए आवश्यक चीजें बनती हैं अर्थात शरीर की रचना के लिए संश्लेषण होता है इसलिए इसे अनाबॉलिज्म कहते हैं।
अनाबॉलिज्म के साथ शरीर में पोषक पदार्थों के विघटन के वजह से कार्बन डाइऑक्साइड, जल, यूरिया आदि बनते हैं जो मल मूत्र पसीना आदि के द्वारा बाहर निकलते हैं । यह हानिकारक पदार्थ बनने की क्रिया कैटाबॉलिज्म कहलाती है ।
अनाबॉलिज्म और कैटाबॉलिज्म यदि सही ढंग से हो रहा हो तो हमारा शरीर स्वस्थ रहता है ।
बचपन की अवस्था में हमारे शरीर में एनाबॉलिक की मात्रा बढ़ी हुई होती है जिसे शरीर की वृद्धि होती है जवानी में, प्रौढ़ावस्था में अनाबॉलिज्म और कैटाबॉलिज्म दोनों बराबर होते हैं लेकिन बुढ़ापे में कैटाबॉलिज्म की मात्रा बढ़ जाती है इसलिए बुढ़ापे में ज्यादा रोग होते हैं ।
भोजन की अच्छी तरह से पचता है तो ठीक ही है और यदि नहीं पचता तो वह ऑत में पहुंचकर के वहीं पर जमा होने लगता है और गैस पैदा करता है । जोकि रोग का कारण होता है इसलिए हमें चयापचय क्रिया, शरीर की मेटाबोलिज में पर विशेष ध्यान देना चाहिए हमारे शरीर का मेटाबॉलिज्म यदि स्थिर रहेगा, सही रहेगा, तो हम जवानी और बुढ़ापे दोनों में रोगों से बचे रहेंगे इसलिए हमारा आहार ऐसा हो जो मेटाबोलिज्म को सही रखें ।

अच्छी सेहत के लिए आहार के निर्णय के लिए निर्णय नियमों का पालन करें:-

  • ताजा भोजन करें:-हमें ताजा भोजन ही खाना चाहिए क्योंकि ताजा भोजन स्वादिष्ट होता है दूसरी बातें हमारे पाचन को तेज करता है समय पर पच जाता है। गैस बनने से रोकता है और हमारे पाचन तंत्र को सही रखता है। गरमा गरम भोजन को निगलने से आहार नली से अमाशय तक छाले होने की संभावना रहती है। बहुत गर्म भोजन नहीं करना चाहिए। बार बार पानी पीना भी पाचन के लिए अच्छा नहीं होता है । इसलिए हमें ताजा भोजन करना चाहिए ।
  • भोजन चिकना होना चाहिए:-भोजन में चिकनाई की उचित मात्रा होनी चाहिए लेकिन अत्यधिक तला भुना नहीं होना चाहिए। चिकनाई के रूप में घी का इस्तेमाल किया जा सकता है। यह शरीर के लिए पोषक होता है बलवर्धक होता है इसलिए चिकनाई का उतना ही प्रयोग करना चाहिए जितना कि आवश्यक हो ।
  • भोजन उचित मात्रा में किया जाना चाहिए:-भोजन की मात्रा उचित ही होनी चाहिए।आवश्यकता से ज्यादा भोजन करने से पेट की हाजमा बिगड़ जाती है जो हानिकारक होता है। भोजन की मात्रा के लिए वैज्ञानिकों ने कैलोरी सिस्टम बनाया है एक शारीरिक कड़ी मेहनत करने वाले को 22०० से 25००  कैलोरी भोजन जरूरी होता है किंतु दिनभर मानसिक काम करने वाले के लिए 2000 कैलोरी पर्याप्त है। इसलिए हमें भोजन करते समय अपने क्षमता, पेट की स्थिति, पाचन की क्षमता आदि को ध्यान में रखते हुए उचित मात्रा में ही भोजन करना चाहिए।
  • भोजन पच जाने के बाद ही भोजन करें:-दिनभर कुछ न कुछ खाते रहने से हमारा भोजन पचता नहीं है। हमारा पाचन तंत्र कमजोर होने लगता है क्योंकि हमारे पाचन तंत्र को बीच में आराम करने का समय ही नहीं मिलता है इसलिए भोजन जब पच जाए तभी हमें भोजन करना चाहिए, इससे हमारे मन में भोजन की इच्छा होती है। शरीर में उत्साह पैदा होता है । स्वस्थ सही रहता है।
  • रोगी होने की स्थिति में, रोग के लिए पथ्य और अपथ्य का ध्यान रखकर भोजन करें।
  • भोजन करने में शीघ्रता नहीं करनी चाहिए जल्दी जल्दी भोजन को निगलने से अमाशय का काम सही ढंग से नहीं हो पाता है और दांतो का काम आंतों को करना पड़ता है इसलिए हमें भोजन को अच्छी तरह से चबा चबाकर धीरे-धीरे ही आराम से करना चाहिए।
  • अधिक देर तक भोजन न करें और ना ही बहुत जल्दी ही करें।
  • बातचीत करते हुए या हंसते हुए भोजन नहीं करना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से हमारे भोजन करते समय भोजन के पाचन में बाधा पैदा होती है इसलिए बातचीत ना करते हुए और ना ही हंसते हुए केवल मन लगाकर ही भोजन करना चाहिए।
  • नीति पूर्वक कमाया हुआ भोजन ही करना चाहिए। अनीत से कमाए हुआ भोजन हमारे शरीर को और मन को रोगी बनाता है।