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व्यक्तित्व निर्माण में अनुशासन का महत्व

 

व्यक्तित्व निर्माण में अनुशासन का महत्व 

व्यक्तित्व हमारे जीवन का आईना होता है व्यक्तित्व निर्माण के क्षेत्र में कई कई फैक्टर्स काम करते हैं ।लेकिन उन सब में अनुशासन महत्वपूर्ण है ।हमारे व्यक्तित्व का निर्माण युवावस्था या एडल्ट एज में ही होता है। युवावस्था के बसंत काल में हमें ऊर्जा ,शक्ति, उत्साह ,उमंग ,ओज की आवश्यकता होती है ।और इन सभी के उपलब्ध होने के साथ-साथ अनुशासन का होना अति आवश्यक है। यदि हममें अनुशासन हैं, तो हम अपनी ऊर्जा शक्ति उत्साह और उमंग को अच्छे कार्यों में लगा सकते हैं। जिससे हमारा व्यक्तित्व अच्छा बन सकता है ।हमारा व्यक्तित्व निखर सकता है। इसलिए हमारे व्यक्तित्व के निर्माण में अनुशासन का बहुत ही महत्व है। अनुशासन के अभाव में हमारा व्यक्तित्व सिकुड़ जाता है। हमारा विचार बहुत ही अच्छा हो फिर भी यदि कुछ कमी है ।अनुशासनहीनता है ।हम अनुशासित नहीं रहते। तो लोगों के सामने हमारी सही और ओरिजिनल एटीट्यूड और एटीट्यूड सामने नहीं आते, जिससे गलत प्रभाव पड़ता है ।और हमारी आदत भी नकारात्मक होती जाती है। और हमारा व्यक्तित्व जो विकसित होना चाहिए था ,वह एक जगह पर पहुंचकर रुक जाता है। इसलिए हमारे व्यक्तित्व के निर्माण में अनुशासन का बहुत ही महत्व है ।आज हम इस लेख में व्यक्तित्व निर्माण में अनुशासन के महत्व पर विचार करेंगें ।1oo%

अनुशासन क्या है:-

 हमारी अपनी जीवन की सभी एक्टिविटी को control,organised, व्यवस्थित रखना और उन्हें मानव के आदर्शों में केंद्रित रखना। मानवीयता बनाकर रहना, यूनिटी का शामिल करना, अनुशासन कहलाता है। अनुशासन हमारे जीवन के सही राह में चलने का एक निश्चित और नियमित तरीका है ।अनुशासन के अंतर्गत मनुष्य का रहन-सहन, खानपान, बात- व्यवहार, बातचीत करने का तरीका, काम करने का तरीका, एटिट्यूड, एटीट्यूड, सभी व्यवस्थित और सुंदर होते हैं । अनुशासन के अंतर्गत जीवन जीने के प्रत्येक स्टेप्स को सम्मिलित किया जा सकता है । सभी प्रकार की उन्नति, सफलता, विकास, की प्राप्ति के लिए जीवन का अनुशासित होना अति आवश्यक है।
डिसिप्लिन मनुष्य के स्वभाव में शामिल हो जाने पर यह डिसिप्लिन हर समय हर, परिस्थिति में, प्रत्येक व्यक्ति को सहायता देती है। और यह प्रत्येक व्यक्ति के लिए आवश्यक भी है। अनुशासन का मनुष्य के आंतरिक और बाह्य जीवन में घनिष्ठ संबंध है ।

 अनुशासनहीनता से सिर्फ असफलता ही मिलती है :-

अनुशासनहीन रहने से हमें सिर्फ असफलता मिलती है। और हमे unsuccess के अलावा कुछ भी नहीं मिलता। displine मानव स्वभाव की एक आवश्यक आवश्यकता है।  यह नहीं होने पर मनुष्य के आंतरिक और उसके फलस्वरूप बाहरी जीवन में अव्यवस्था फैल जाती है । इस प्रकार से अनुशासन मनुष्य के आंतरिक और बाह्य जीवन में व्यवस्था बनाए रखने के लिए अति आवश्यक है । अनुशासनहीनता की वजह से मनुष्य के आंतरिक और बाह्य जीवन में उत्पन्न अव्यवस्था से मनुष्य की शक्तियां आपस में ही लड़ पड़ती हैं । आपस में टकराने लगती हैं। यदि सड़क पर चलने वाले तांगे ,साइकिल , स्कूटर ,गाड़ी आदि सभी अव्यवस्थित और बिना नियम कानून के चलने लगेंगे तो उनमें परस्पर टकराव होगा। एक्सीडेंट होगी । इसी तरह की जीवन के अनेक छोटे और बड़े पहलुओं में अव्यवस्था फैल जाने से भी आपस में टकराते हैं। और इससे मनुष्य जीवन के विभिन्न क्षेत्र में मनुष्य को पराजय( failure) का सामना करना पड़ता है। इस पराजय की वजह से अशांति बेचैनी बढ़ती है। मनुष्य को शांति, प्रसन्नता और संतोष तभी मिल सकता है। जब मनुष्य अपने लक्ष्य की ओर प्रगति करता रहे ।और वह अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में लगा रहे । और मनुष्य की विचार विकास यात्रा चलती रहे ।जीवन के सभी स्थितियों में स्वस्थ रूप से विकास होता रहे। और यह तभी संभव है जब जीवन अनुशासित हो ।क्योंकि अनुशासित जीवन से हमारे प्रतिदिन के कार्यक्रमों में व्यवस्था पैदा होती है। और गति पैदा होती है। हम सभी कार्य व्यवस्थित करते हैं। और लगातार व्यवस्थित कार्य करने की वजह से हमारी प्रगति होती है। इसलिए अनुशासन का होना अति आवश्यक है।  अनुशासित होने से हमारा व्यक्तित्व निश्चित रूप से विकसित होता है। इसीलिए कहा गया है कि अनुशासन अच्छे व्यक्तित्व निर्माण की महत्वपूर्ण  और जरूरी है।
मनुष्य जब अनुशासित जीवन व्यतीत करता है  और उस अनुशासन की वजह से जब व्यक्तित्व का निर्माण होता है। तब मनुष्य की मानसिक शक्तियां आपस में नहीं टकराती। बल्कि  यूनाइट होकर कार्य करती हैं । और आगे बढ़ने में मदद करती हैं। अनुशासित जीवन की वजह से अनफेवर कंडीशन में या प्रतिकूल परिस्थिति में भी मनुष्य आगे बढ़कर सफलता को प्राप्त करता है । अनुशासित रहने वाला व्यक्ति सदैव खुश मिजाज रहता है। और हमेशा आनंद की स्थिति में रहता है ।उसके उपस्थित हो जाने मात्र से उस जगह की वातावरण में प्रसन्नता की लहर बढ़ जाती है। अच्छाइयों का विकास होता है ।भले काम उसके द्वारा होने लगते हैं ।और उसके पर्सनालिटी में ,उसके व्यक्तित्व में, अनुशासन की वजह से चार चांद लगने लगते हैं ।

 अनुशासन के प्रकार :-

 अनुशासन दो प्रकार का होता है 
 आंतरिक अनुशासन और  बाह्य अनुशासन
 आंतरिक अनुशासन को मनुष्य स्वयं समझता है और महसूस करता है। जबकि बाहृय अनुशासन दूसरे द्वारा लागू किया जाता है। यदि मनुष्य पूर्ण रूप से आंतरिक अनुशासन का पालन करें तो फिर उसे बाहृय अनुशासन की आवश्यकता नहीं पड़ती है ।एक बालक को आंतरिक अनुशासन का ज्ञान नहीं रहता इसलिए माता-पिता और अध्यापक  उसे अनुशासन सिखाते हैं। और अभ्यास से बालक आंतरिक अनुशासन को सीख कर आगे स्वयं ही अनुशासित रहने लगता है ।और जब वह अनुशासित रहने लगता है तो उसके व्यक्तित्व का विकास होना शुरू हो जाता है ।

अनुशासन समाज के निर्माण में महत्वपूर्ण है:-

 जब कोई व्यक्ति गलत कार्य करता है, तो उसे वह समाज की नजर से बचाता है। इसका कारण है कि मनुष्य अपने गलत कार्य को समाज के विपरीत समझता है । मनुष्य का अच्छा कार्य ,अच्छाइयां सदगुण ,आदर्श, एक श्रेष्ठ समाज का रूप है । श्रेष्ठ पुरुषों के आचार विचार को आधार बनाकर ही समाज के स्वरूप का निर्धारण कर सकते हैं। किसी चोर, लुटेरे ,डाकू और गुंडे के चरित्र पर समाज का निर्माण कभी नहीं होता है।क्योंकि उनमें आंतरिक अनुशासन का अभाव होता है। इसके विपरीत महापुरुषों का जीवन आंतरिक अनुशासन से भरा होता है। और उसका अनुसरण करके ही मानव समाज भी जीवन में अनुशासन को स्वीकार करता है । जिससे सामाजिक व्यक्तित्व का निर्माण होता है। इसलिए अनुशासन समाज के निर्माण में महत्वपूर्ण है ।

एक बार एक राजा ने अपनी प्रजा में घोषणा कराई कि राज्य के कार्य के लिए हजार लीटर दूध की आवश्यकता है। सभी नागरिक रात्रि के समय बगीचे में रखें बर्तनों में अपने अपने हिस्से का एक एक लोटा दूध डाल दें। रात्रि का समय और चौकीदार के ना होने से लोगों ने लाभ उठाया और सभी ने दूध के स्थान पर पानी डालना आरंभ कर दिया। इतने लौटे दूध में हमारे एक लोटा पानी का किसी को पता नहीं चलेगा यह सोच कर सभी ने सिर्फ पानी ही डाला और सुबह दूसरे दिन बर्तनों में से पानी पानी मिला। इस स्थिति को मंत्री ने समझा और राजा को समझाया कि सामाजिक अनुशासन और लोगों के अंदर की आंतरिक अनुशासन देश और राज्य को चलाने के लिए कितना आवश्यक है ।
मनुष्य के मन में और उसकी आंतरिक जीवन में कार्य कर रहे हैं सभी भाव, विचार और एटीट्यूट का  संशोधन और उसका संतुलन कायम करना अनुशासन का उद्देश्य है । जब उसके सभी भावों और विचारों और एटीट्यूड और एप्टिट्यूड में संतुलन या बैलेंस स्थापित हो जाता है, तब मनुष्य का जीवन और व्यक्तित्व संभल जाता है। वह हर अवसर पर अपने अच्छे कार्य और विचार को प्रस्तुत करता है । वह नहीं चाहता कि वह किसी से लड़े ,किंतु ऐसी परिस्थितियों में वह अपने व्यक्तित्व के बल पर पूर्णरूपेण सुरक्षित निकल जाता है ।
इसलिए व्यक्तित्व विकास के लिए जीवन में पूर्णरूपेण अनुशासन  को सम्मिलित करना, अपने आंतरिक जीवन में सुधार करना और अनुशासन को कायम करना अति आवश्यक है । मनुष्य को अनुशासन सिखाने के बाहरी उपाय सहयोग जरूर करते हैं। किंतु जब तक आंतरिक अनुशासन नहीं होता तब तक उसके मन में, जीवन में, अनुशासन का महत्व स्थापित नहीं होता और अनुशासन के ना होने पर उसके व्यक्तित्व का विकास सही ढंग से नहीं हो सकता है ।इसलिए व्यक्तित्व विकास के लिए अनुशासन अति आवश्यक है।