बच्चों की देखभाल कैसे करे और एक अच्छे मां- बाप कैसे बने।

हर एक मां बाप अपने बच्चों का विकास चाहते हैं। वह किसी भी प्रकार से अपने बच्चे का बुरा नहीं करना चाहते, वे सिर्फ विकास चाहते हैं । लेकिन यह विकास करने की इच्छा कभी-कभी बच्चे के लिए हानिकारक हो जाती है । इससे बचने के लिए ही बच्चों का पालन पोषण यानी परवरिश कैसे करें, और अच्छे मां-बाप कैसे बने । लेख को लिखने का प्रयास किया जा रहा है । परवरिश के उत्साह में, मां बाप को यह पता भी नहीं चलता कि यह कब हानिकारक हो गए। क्योंकि बच्चों को सिखाने की जगह पर अभीभावक, अनावश्यक दबाव डालकर शासन करने लगते हैं। और यह उन्हें भी पता नहीं होता और इसलिए जरूरी होता है कि, बच्चे का लालन पालन कैसे करें यह जानकारी हो। कभी-कभी अत्यधिक प्यार में बच्चे भी बिगड़ते हुए देखे जाते हैं। इसकी भी जानकारी होनी चाहिए कि, कब हमें कडा़ई का पालन करना चाहिए और कब ढिलाई देनी चाहिए ।
अभिभावकों, विशेषकर माता और पिता के ऊपर बच्चों में अच्छी आदत डालने ,उन्हें  सुयोग्य बनाने, उन्हें मजबूत बनाने का विशेष उत्तरदायित्व होता है । और सभी माता-पिता यह चाहते भी हैं कि, उनके बच्चे सुयोग्य बने। किंतु बच्चों का समुचित और सही विकास होना एक पेचीदा काम है। इसके लिए माताओ-पिताओ मे काफी विचारशीलता, विवेक, संजीदगी और मनोवैज्ञानिक ज्ञान का होना अति आवश्यक है । इन सभी  बातों को ध्यान में रखते हुए, इस लेख में बच्चों की अच्छी  परवरिश के बारे में हम चर्चा करेंगे ।100%

बच्चों में अच्छी आदतें पैदा करें और बढ़ाएं :-

बच्चों के निर्माण में माता पिता और गुरु की भूमिका सदियों से बड़ी चढ़ी रही है । मां- बाप और गुरु ही बच्चे को एक जिम्मेदार नागरिक बना सकते हैं । और इसमें भी शुरुआती दौर में मां- बाप ही बच्चों में अच्छी आदत पैदा करने के लिए सहायक होते है।
बहुत से मां-बाप तो बच्चे पैदा करने, उन्हें खिलाने- पिलाने, स्कूल में भेजने, ट्यूशन में पढ़ाने, ट्यूशन लगाने आदि में पढ़ने की व्यवस्था और खाने की व्यवस्था करके अपने उत्तरदायित्व को पूर्ण मान लेते हैं। किंतु इससे बच्चे का संपूर्ण विकास नहीं हो पाता, उसकी समस्याओं का पूर्ण हल नहीं हो पाता। हालांकि बच्चों के विकास में खानपान और शिक्षा का स्थान है। किन्तु अच्छी आदत डालना ,उनमें सद्गुणों का विकास कर के सुयोग्य नागरिक बनाना अलग बात है। उनमें पशुता की जगह पर इंसान की इंसानियत पैदा हो । इसके लिए प्रयास करना पड़ता है। बच्चों को प्यार करना, खिलाना- पिलाना, उनकी रक्षा करना तो पशुओं में भी पाया जाता है। किंतु इन से हटकर, बच्चे को योग्य बना लेना, उनमे अच्छी आदतों को डाल देना, यह मनुष्य होने का महत्वपूर्ण गुण है।

बच्चों में बढ़ती हुई अनुशासनहीनता हो, या फिर बच्चों में कोई अच्छे गुण का विकास हो, बच्चों की हर अच्छाइयांँ और बच्चों की हर बुराइयों का जिम्मेदार, कुछ हद तक अभिभावक भी होते हैं।

नहीं चाहिए बच्चों को फौजी नियम :-

बच्चों में अनुशासन और आज्ञा पालन की आदत पैदा करने के लिए, अधिकांश अभिभावक फौज के नियमों का पालन करते हुए देखे जाते हैं । किसी भी कार्य को पूरा करने के लिए, बच्चों को जोर जबरदस्ती कराते हैं। और अधिकार पूर्वक ,आदेश देते हैं ।रौब दिखाकर या दबाव बनाकर के बच्चों से कोई भी कार्य कराना चाहते हैं । और बच्चों के विकास में इसका क्या असर होगा, इस पर कोई भी ध्यान नहीं देते । बच्चे कुछ समय तक तो आदेश का पालन करते हैं । लेकिन कुछ समय बाद वे आदेशों को अनसुना करना शुरू कर देते हैं । तो उनकी फिर पिटाई भी शुरू हो जाती है । उनको चिल्लाना, चीखना, गाली देना  शुरू हो जाता है । किंतु मां- बाप एक गलती बार-बार करते जाते हैं। और वे यह नहीं जान पाते कि हमारे इस व्यवहार से बच्चों में विरोधी भावना, हमारे प्रति विद्वेष आदि भरा जा रहा है। बच्चे जानबूझकर टालमटोल करना शुरू कर देते हैं। और इसका परिणाम यह होता है कि बच्चे अनुशासन हीन और उद्दंड बन जाते हैं। इसलिए बच्चों को फौजी नियम के तहत, जबरदस्ती कार्य नहीं कराया जाना चाहिए । बल्कि उसे प्रेम से समझाना चाहिए।

बच्चों को आज्ञा देने से पहले यह देखें कि वह कर क्या रहा है :-

बच्चों से किसी भी प्रकार का काम लेने से पहले, या उन्हें किसी भी प्रकार की आदेश या आज्ञा देने से पहले, यह भी जानना जरूरी होता है कि, बच्चा उस समय कर क्या रहा है ? उदाहरण के लिए यदि बच्चा आपने किसी दिलचस्प काम में लगा हुआ है, तो वह आपकी बात पर ध्यान नहीं देगा। यदि वह एकाग्रता से पढ़ रहा है, या फिर अपने मित्रों के साथ खेल कूद रहा है, तो ऐसे समय में उसे आज्ञा देना गलत होगा । ऐसी स्थिति में प्राय बच्चे आज्ञा का पालन नहीं करते। और ऐसे में भी आप नाराज होते हैं चिल्लाते हैं। उसे गाली देते हैं। मारते, पीटते हैं । जबरदस्ती काम लेते हैं । रौब- दबाव डालकर कार्य कराना चाहते हैं। तो उसमे रूठने ,चिल्लाने ,मचलने या बात का ध्यान न देने आदि की आदत पड़ जाएगी। और फिर आप हर बात में  चिल्लाएंगे । बेकार की बातें बोलेंगे । और वह उद्दंड होता जाएगा । इसमें अच्छी आदतों का विकास होना मुश्किल हो जाएगा । इसलिए बच्चे जब कार्य में लगे हुए हो तो उस समय उन्हें आज्ञा देने से बचना चाहिए । हो सके तो उनसे प्रेम से, स्वतंत्र रूप से, जब वे स्वतंत्र हो तभी काम ले।

बच्चों को दिए जाने वाले आदेश रचनात्मक होने चाहिए :-

बच्चों को आदेश देते समय ,उनके स्वास्थ्य मानसिक स्थिति को ध्यान देना चाहिए। जहां तक हो सके तो आदेश में खेल या मनोरंजन या कोई नवीन कार्य जोड़ देना चाहिए । दिया हुआ आदेश मनोरंजन के रूप में हो या खेल के रूप में हो तो श्रेष्ठ होगा। आदेश में रचनात्मकता होनी चाहिए । जिससे वह खुशी-खुशी आपका काम भी कर देगा। उसमें अच्छाइयांँ भी विकसित होंगी। वह रचनात्मक होगा। और किसी भी प्रकार का व्यक्तित्व संबंधित जटिलता आने से बचाव होगा। यदि हम आदेशात्मक रूप से बात करते हैं, तो जैसे कि, यह काम मत करना ! वहां मत जाना ! उसे मत छूना ! आदि । तो उसमें, बच्चे में, नकारात्मक आदेश की वजह से, उस कार्य को करने की इच्छा प्रकट होने लगती है । क्योंकि , जिन कार्य को करने से रोका जाता है। बच्चे प्रायः उसी कार्य को करते हैं। इसलिए कार्य कराने से पहले ,उन्हें आदेश देने के बजाय, उन को मनोरंजनात्मक रूप में, रचनात्मक रूप में काम लेना चाहिए।

बच्चों से राय लीजिए :-

अनुशासन, आज्ञा पालन से संबंधित बातों पर स्वयं बच्चों की राय भी लेनी चाहिए। बच्चों से राय लेने पर वे खुश होते हैं। और भी तत्परता के साथ अनुशासन को पूर्ण करने का प्रयत्न करते हैं । क्योंकि ऐसे में उन्हें एक अधिकार का स्थान प्राप्त होता है। बच्चों को पुकार कर, या दूर से चिल्लाकर, कोई आदेश न दिए जाएं । बल्कि बच्चों को नजदीक बुलाकर, उन्हे अपने पास पर बैठा कर , बात किया जाना चाहिए। इस प्रकार से बच्चे  अनुशासन का मूल्य या अनुशासन का महत्व समझेंगे। और मन लगाकर, तत्परता से और तन्मयता से आपकी बातों पर ध्यान देंगे । और कार्यों को पूर्ण करेंगे ।