आत्मसम्मान कैसे बढ़ाए।
how to increase your self-esteem
हाउ टू रिस्पेक्ट सेल्फ | खुद का सम्मान कैसे करें ।
आत्म सम्मान या self-esteem के अंतर्गत अपने स्वयं के सम्मान की रक्षा करना सम्मिलित है कोई भी व्यक्ति स्वयं को कुत्ता कहलाना पसंद नहीं करता है क्योंकि हमारी आत्मा य मन सम्मानजनक स्थिति में रहना पसंद करती है कोई भी स्वाभिमानी व्यक्ति अपनी सम्मान की स्थिति को सहन नहीं कर सकता है ।कुत्ता बार-बार मार-मार कर भी भगाया जाता है लेकिन रोटी के टुकड़े के लिए दुम हिलाता हुआ मालिक के मिलाता हुआ मालिक के पैर चाटता है । लेकिन मनुष्य के लिए यह स्थिति असहनशील होती है और मनुष्य अपनी तुलना कुत्ते से नहीं करना चाहता है । किसी में चाहे एक भी गुण ना हो, लेकिन यदि वह स्वाभिमानी है, तो वह अपनी आत्मा के स्वाभिमान को गिरने नहीं देता है । और यदि किसी में चाहे कितने भी गुण हो और वह यदि अपने सम्मान की रक्षा नहीं कर सकता तो वह नीच, गिरा हुआ इंसान ही समझा जाता है ।100%
आत्मसम्मान कैसे बढ़ाए
आत्मसम्मान वह सम्मान नही है, जो किसी दूसरे के द्वारा दिया जाता है । आत्म सम्मान समाचार पत्रों में छापे गए प्रशंसा पत्र नहीं है । यह तो बड़ी निजी अनुभूति होती है, जो स्वयं के अंतर चेतना में होती है । जिन्हें आत्म सम्मान का ज्ञान होता है वह हमेशा ही बड़ा संतुष्ट और प्रसन्न रहते हैं उनका चाहे कोई गुणगान करें या ना करें । वह ढेरों सम्मान मिलने के बाद भी अंतर्मन रूप से संतुष्ट ही होते हैं, और सम्मान ना मिले तो भी संतुष्ट ही रहते हैं ।
यह तो स्वयं की नजरो में स्वयं का सम्मान है । यह स्वयं की अनुभूति (self realism) है । इसमे स्वयं की चेतना होती है । इसे विकसित करने के कुछ उपायों की चर्चा करेंगे ।
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सम्मान के साथ जीना ही आत्म सम्मान है:-
शान से जीते रहने की शान इसी में है,, कि हम सम्मान के साथ जिए । लोगों की नजर में और अपने नजर में हमारा सम्मान बरकरार रहे । इसलिए जरूरी है कि आत्म सम्मान को उचित पोषण और बल मिलता रहे । यदि हम सम्मान के साथ जीते हैं तो हमारे मानसिक स्वास्थ्य की उन्नति होती है । बुद्धि बढ़ती है । कार्य करने की क्षमता बढ़ती है । और हम बड़ी से बड़ी बाधाओं को पार करते हुए अपने लक्ष्य में सफल हो जाते हैं ।
आत्म सम्मान और आत्म तिरस्कार:-
आत्म सम्मान और आत्म तिरस्कार दोनों एक दूसरे के परस्पर विरोधी हैं । इन दोनों स्थितियों का मानसिक स्वास्थ्य पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है धुए से भरे हुए जगह पर हम सुख चैन के साथ नहीं रह सकते हैं इसी प्रकार यदि हमारे चारों ओर और हमारे सभी परिचित लोग से तिरस्कार की भावनाएं मिलती हैं तो इस प्रकार के वातावरण में हर इंसान की आत्मसम्मान को घुटन महसूस होती है hate की भावनाओं के बीच जीने से मानसिक रोगों की भरमार हो जाती है!
ईमानदारी से ही मिल सकता है आत्म सम्मान
आज साहसी और वीर पुरुषों की कमी है, जिधर देखो उधर ही चापलूसी खुदगर्जी और कायरता ही दिखाई पड़ती है । बेईमानी की बाढ़ आ गई है । लेकिन बेईमानी से जमा की हुई पूंजी ऐसी है, जैसे कि हिरण के लिए कस्तूरी । कस्तूरी की महक से हिरण को नींद नहीं आती । उसी प्रकार से बेईमान को भी नींद नहीं आती इसलिए इस प्रकार की बेईमानी की संपत्ति से क्या लाभ जिससे कि नींद ही गायब हो जाए।
आत्म सम्मान को पाने के लिए और सुरक्षित रखने के लिए जरूरी है, कि ईमानदारी के रास्ते पर चलने की कोशिश की जाए । आप जो भी कार्य करें । ईमानदारी से करें । अपने पूरे प्रयास से करें । और उसमें बेईमानी की किसी भी प्रकार की गुंजाइश ना रहे।
किसी से विश्वासघात करना, किए हुए वादे से मुकर जाना ,कहना कुछ और करना कुछ , ऐसी आदतें आत्मविश्वास और आत्मसम्मान के लिए जहर के समान है । ईमानदारी जीवन की वह पहली सीढ़ी है, जिस पर चढ़कर ही व्यक्ति जीवन के हर क्षेत्र में तरक्की कर सकता है । चाहे वह धर्म का क्षेत्र हो, अध्यात्म का क्षेत्र हो, या अन्य किसी प्रकार की सफलता हो या फिर विद्या अध्ययन हो । जब विद्यार्थी ईमानदारी से पढ़ाई करता है ,तो उसके परिणाम भी अच्छे ही आते हैं। इसीलिए भारतीय संस्कृत में भारतीय दर्शन में चरित्र के बल को ज्यादा ही महत्व दिया जाता है जिसमें चरित्र का खरापन है वह निश्चित ही स्वाभिमानी होगा ईमानदार होगा और आत्मसम्मान वाला होगा ।
आजकल सबसे ज्यादा पतन व्यापारिक चरित्र का हो रहा है, हमें हरामखोरी की लत लगी हुई है । मजदूर वर्ग भी मेहनत करना नहीं चाहता और मालिक वर्ग को भी संतोष नहीं, वह भी कम से कम दाम में ज्यादा काम लेना चाहता है । ऐसी स्थिति में सिर्फ ईमानदारी ही संतुलन बैठा सकती है ।
आत्मसम्मान के प्रभाव
- जिस देश के बुद्धिमान लोग अपनी बुद्धि का प्रयोग ईमानदारी से करना छोड़ देते हैं वह देश और वह जारी सभी प्रकार से दीन हीन और नष्ट भ्रष्ट हो जाता है । जब बुद्धिमान लोग बेईमानी करने पर उतारू हो जाए, तो उस देश का भगवान ही मालिक है । क्योंकि सामान्य व्यक्ति अपने से बड़े का व्यवहार का ही अपने आचरण में लाता है । इसलिए जब बुद्धिमान ही भ्रष्ट हो जाए तो उस देश के छोटे और बड़े सभी भ्रष्ट हो जाते हैं
- आत्मसम्मान के लिए जरूरी है कि हमारे व्यवहार और आचरण में ऑथेंटिसिटी या प्रमाणिकता हो । अगर आप बुद्धिजीवी हैं तो अपने ज्ञान का उपयोग अपनी और समाज की भलाई के लिए करें । अपनी बुद्धि का इस प्रकार से प्रयोग करें, कि समाज से छल कपट भ्रष्टाचार अज्ञान अशांति शोषण जैसे कुरीतियों की वृद्धि ना हो ।
- सम्मान, प्रतिष्ठा, आदर, और इज्जत का जीवन ही जीवन है ।इसलिए आप अपने जीवन में "खरी मजदूरी चोखा काम "के सिद्धांत को बना लीजिए । आप खरे बनिए, खरा काम कीजिए और खरी बात कहिए । इससे आपका ह्रदय हल्का रहेगा और आप निर्भय होकर इज्जत की जिंदगी जी सकेंगे । यदि आप अपनी जिंदगी इस प्रकार से हल्के-फुल्के रूप में इज्जत के साथ जी सके ,तो आप समझ लीजिए कि आपने स्वर्ग का राज्य अपनी मुट्ठी में ले लिया है ।
- मनुष्य के लिए आत्म गौरव और आत्म सम्मान ऐसी पूंजी है, जिस को चाहने वाला स्वाभिमानी पुरुष अपमान का कड़वा घूंट पीने के बजाय सुखी रोटी खाना पसंद करता है । वह जोखिम उठा सकता है, जिम्मेदारी निभा सकता है ।लेकिन अपमान को नहीं सह सकता है । इसके विपरीत जो लोग जोखिम उठाने से डरते हैं और जिम्मेदारी से डरते हैं उनके लिए सम्मान से जीना और सम्मान को सुरक्षित रखना दोनों ही कठिन होता है ।
- इमानदारी से जीवन यापन करने और मीठा बोलने और अच्छा आचरण करने पर आत्मसम्मान की वृद्धि हो जाती है ।
- किसी भ्रष्ट आदमी को धन ,अधिकार ,ऊंचा पद ,शारीरिक बल आदि मिल जाए तो उसका अहंकार बढ जाता है वह दूसरों का अपमान करने में नहीं चूकता है। दूसरों का अपमान करने को वह अपना बड़प्पन समझता है ऐसे लोगों को ठीक करने के लिए असाधारण धैर्य वाला व्यक्ति ,तपस्वी व्यक्ति होना चाहिए । या फिर घुसे का जवाब लात से देने में सक्षम व्यक्ति चाहिए ।
- अंहकारी व्यक्ति आतंक के दम पर गरीब और निर्धन लोगों का शोषण किया करते हैं । इससे उन्हें धन तो मिलता है लेकिन चैन नहीं मिल पाता । धीरे-धीरे आत्मसम्मान कमजोर होता जाता है ।
- कपटी लोग अंदर से पत्थर दिल के होते हैं और बाहर से मोम बनने की कोशिश करते हैं । ऐसे लोग मानव के लिए, मानव जाति के लिए एक चुनौती के समान होते हैं । इनमें कोई आत्मसम्मान नहीं होता । ऐसे लोगों से बचकर ही रहना ठीक होता है ।
- अन्याय के सामने आत्मसमर्पण करना, बेईमानी का यह दूसरा रूप है । जिस प्रकार बेईमानी करके व्यक्ति अपने अभिमान को खो देता है उसी प्रकार अत्याचारी के सामने समर्पण करने पर आत्मसम्मान और आत्म गौरव नष्ट हो जाता है । आत्मसमर्पण कर देने से अपना साहस ,बल ,पराक्रम सब नष्ट हो जाते हैं । इसलिए कहा गया है कि अन्याय सहने वाला अन्याय करने वाले से अधिक पापी होता है ।
- जीवन को सभी तरह से खुशहाल और समृद्धि एवं उन्नत बनाने वाली शक्ति है, आत्मसम्मान। जो व्यक्ति अपने आप को प्रतिष्ठित और बड़ा आदमी बनाना चाहता है वह इसके लिए उपाय भी ढूंढ लेगा और रास्ता भी पाएगा। क्योंकि जो ढूंढता है वही तो पाता है । जब आत्म सम्मान के लिए महत्वाकांक्षाए जोर मारती हैं, तो योग्यताएं और साधन सब का इंतजाम होने लगता है । और जो काम कठिन दिखाई देता है वह काम आत्मबल और आत्म सम्मान के साथ मिलने पर सरलता से पूरा हो जाता है । इसलिए आत्मसम्मान ही सही मायने में जीवन जीने की राह है ।